अध्यक्षान्विविधान्कुर्यात्तत्र तत्र विपश्चितः । तेऽस्य सर्वाण्यवेक्षेरन्नृणां कार्याणि कुर्वताम् ।

‘‘उस राज्यकार्य में विविधप्रकार के अध्यक्षों को सभा नियत करे । इनका यही काम है – जितने – जितने, जिस – जिस काम में राजपुरूष होवें नियमानुसार वत्र्तकर यथावत् काम करते हैं वा नहीं । जो यथावत् करें तो उनका सत्कार और जो विरूद्ध करें तो उनको यथावत् दण्ड दिया करें ।’’

(स० प्र० षष्ठ समु०)

राजा अनेक योग्य विद्वान् अध्यक्षों को आवश्यकतानुसार विभिन्न कार्यों में नियुक्त करे वे सब अध्यक्ष इस राजा द्वारा नियुक्त सब कार्य करते लोगों का निरीक्षण करें ।

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