सांवत्सरिकं आप्तैश्च राष्ट्रादाहारयेद्बलिम् । स्याच्चाम्नायपरो लोके वर्तेत पितृवन्नृषु

वार्षिक कर आप्त पुरूषों के द्वारा ग्रहण करे और जो सभापतिरूप राजा आदि प्रधान पुरूष हैं वेसब सभा – वेदानुकूल होकर प्रजाके साथ पिता के समान वत्र्तें ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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