यजेत राजा क्रतुभिर्विविधैराप्तदक्षिणैः । धर्मार्थं चैव विप्रेभ्यो दद्याद्भोगान्धनानि च

राजा बहुत दक्षिणा वाले अनेक यज्ञों को किया करे तथा धर्म के लिए विद्वान् ब्राह्मणों को भोग्यवस्तुओं एवं धनों का दान करे ।

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