सप्तकस्यास्य वर्गस्य सर्वत्रैवानुषङ्गिणः । पूर्वं पूर्वं गुरुतरं विद्याद्व्यसनं आत्मवान् ।

‘‘जो ये सात दुर्गुण दोनों कागज और क्रोधज दोषों में गिने हैं, इनमें से पूर्व – पूर्व अर्थात् व्यर्थव्यय से कठोर वचन, कठोर वचन से अन्याय से दंड देना, इससे मृगया खेलना, इससे स्त्रियों का अत्यन्त संग, इससे जुआ अर्थात् द्यूत करना और इससे भी मद्यादि सेवन करना बड़ा दुष्ट व्यसन है ।’’

(स० प्र० षष्ठ समु०)

इस सात प्रकार के दुर्गुणों के वर्ग में जो सब स्थानों पर सब मनुष्यों में पाये जाते हैं आत्मा की उन्नति चाहने वाला राजा पहले – पहले व्यसन को अधिक कष्टप्रद समझे ।

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