दण्डस्य पातनं चैव वाक्पारुष्यार्थदूषणे । क्रोधजेऽपि गणे विद्यात्कष्टं एतत्त्रिकं सदा ।

और क्रोधजो में बिना अपराध दण्ड देना कठोर वचन बोलना और धन आदि का अन्याय में खर्च करना ये तीन क्रोध से उत्पन्न हुए बडे दुःखदायक दोष हैं ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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