क्यों कि संसार में दूसरे का पदार्थ ग्रहण करना अप्रीति और देना प्रीति का कारण है, और समय पर उचित क्रिया करना उस पराजित के मनोवांच्छित पदार्थों का देना बहुत उत्तम है ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
क्यों कि संसार में दूसरे का पदार्थ ग्रहण करना अप्रीति और देना प्रीति का कारण है, और समय पर उचित क्रिया करना उस पराजित के मनोवांच्छित पदार्थों का देना बहुत उत्तम है ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)