प्रहर्षयेद्बलं व्यूह्य तांश्च सम्यक्परीक्षयेत् । चेष्टाश्चैव विजानीयादरीन्योधयतां अपि ।

जिस समय युद्ध होता हो तो उस समय लड़ने वालों को उत्साहित और हर्षित करें, जब युद्ध बंद हो जाये तब जिससे शौर्य और युद्ध में उत्साह हो वैसे वक्तृत्वों से सबके चित्त को खान – पान, अस्त्र – शस्त्र, सहाय और औषधादि से प्रसन्न रखे, व्यूह के बिना लड़ाई न करे, न करावे लड़ती हुई अपनी सेना की चेष्टा को देखा करे कि ठीक – ठीक लड़ती है वा कपट रखती है ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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