संशोध्य त्रिविधं मार्गं षड्विधं च बलं स्वकम् । सांपरायिककल्पेन यायादरिपुरं प्रति ।

तीन प्रकार के मार्ग अर्थात् एक – स्थल – भूमि में, दूसरा – जल – समुद्र वा नदियों में, तीसरा – आकाशमार्गों को शुद्ध बनाकर, भूमिमार्ग में रथ, अश्व, हाथी; जल में नौका और आकाश में विमान आदि यानों से जावे और पैदल, रथ, हाथी, घोड़े, शस्त्र और अस्त्र, खान – पान आदि सामग्री को यथावत् साथ ले बलयुक्त पूर्ण करके किसी निमित्त को प्रसिद्ध करके शत्रु के नगर के समीप धीरे धीरे जावे ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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