यदा प्रहृष्टा मन्येत सर्वास्तु प्रकृतीर्भृशम् । अत्युच्छ्रितं तथात्मानं तदा कुर्वीत विग्रहम् ।

जब अपनी सब प्रजा वा सेना अत्यन्त प्रसन्न उन्नतिशील और श्रेष्ठ जाने वैसे अपने को भी समझे तभी शत्रु से विग्रह – युद्ध कर लेवे ।

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