यदावगच्छेदायत्यां आधिक्यं ध्रुवं आत्मनः । तदात्वे चाल्पिकां पीडां तदा संधिं समाश्रयेत्

. जब यह जान ले कि इस समय युद्ध करने से थोड़ी पीड़ा प्राप्त होगी और पश्चात् (भविष्य) में करने से अपनी वृद्धि और विजय अवश्य होगी तब शत्रु से मेल करके उचित समय तक धीरज रखे ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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