एकाकिनश्चात्ययिके कार्ये प्राप्ते यदृच्छया । संहतस्य च मित्रेण द्विविधं यानं उच्यते ।

अकस्मात् कोई कार्य प्राप्त होने में एकाकी वा मित्र के साथ मिल के शत्रु की ओर जाना (चढ़ाई करना) यह दो प्रकार का गमन (यान) कहाता है ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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