स्वयं किसी प्रकार क्रम से क्षीण हो जाये अर्थात् निर्बल हो जाये अथवा मित्र के रोकने से अपने स्थान में बैठे रहना यह दो प्रकार का आसन कहाता है ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
स्वयं किसी प्रकार क्रम से क्षीण हो जाये अर्थात् निर्बल हो जाये अथवा मित्र के रोकने से अपने स्थान में बैठे रहना यह दो प्रकार का आसन कहाता है ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)