क्षत्रियस्य परो धर्मः प्राजानां एव पालनम् । निर्दिष्टफलभोक्ता हि राजा धर्मेण युज्यते ।

इसलिए राजाओं का प्रजापालन ही करना परम धर्म है और जो मनुस्मृति के सप्तमाध्याय में कर लेना लिखा है और जैसा सभा नियत करे उसका भोक्ता राजा धर्म से युक्त होकर सुख पाता है, इससे विपरीत दुःख को प्राप्त होता है ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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