विक्रोशन्त्यो यस्य राष्ट्राद्ह्रियन्ते दस्युभिः प्रजाः । संपश्यतः सभृत्यस्य मृतः स न तु जीवति

. जिस भृत्यसहित देखते हुए राजा के राज्य में से डाकू लोग रोती, विलाप करती प्रजा के पदार्थ और प्राणों को हरते रहते हैं वह जानों भृत्य – अमात्यसहित मृतक है जीता नहीं है और महादुःख पाने वाला है ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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