एवं सर्वं विधायेदं इतिकर्तव्यं आत्मनः । युक्तश्चैवाप्रमत्तश्च परिरक्षेदिमाः प्रजाः ।

. इस प्रकार सब राज्य का प्रबन्ध करके सदा इसमें युक्त और प्रमादरहित होकर अपनी प्रजा का पालन निरन्तर करे ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *