राजा कर्मसु युक्तानां स्त्रीणां प्रेष्यजनस्य च । प्रत्यहं कल्पयेद्वृत्तिं स्थानं कर्मानुरूपतः ।

राजा राजकार्यों में नियुक्त राज पुरूषों स्त्रियों और सेवक वर्ग की पद और काम के अनुसार प्रतिदिन की कर्मस्थान और जीविका निश्चित कर दे ।

‘‘जितने से उन राजपुरूषों का योगक्षेम भलीभांति हो और वे भलीभांति धनाढय भी हों, उतना धन वा भूमि राज्य की ओर से मासिक वा वार्षिक अथवा एक बार मिला करे । और जो वृद्ध हों उनको भी आधा मिला करे, परन्तु यह ध्यान में रखे कि जब तक वे जियें तब तक वह जीविका बनी रहे पश्चात् नहीं । परन्तु इनके सन्तानों का सत्कार वा नौकरी उनके गुण के अनुसार अवश्य देवे । और जिसके बालक जब तक समर्थ हों और उनकी स्त्री जीती हो तो उन सब के निर्वाहार्थ राज की ओर से यथायोग्य धन मिला करे । परन्तु जो उसकी स्त्री वा लड़के कुकर्मी हो जायें तो कुछ भी न मिले ऐसी नीति राजा बराबर रखे ।’’

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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