तेषां ग्राम्याणि कार्यानि पृथक्कार्याणि चैव हि । राज्ञोऽन्यः सचिवः स्निग्धस्तानि पश्येदतन्द्रितः

‘‘और एक – एक, दश – दश सहस्त्र ग्रामों पर दो सभापति वैसे करें जिनमें एक राजसभा में और दूसरा अध्यक्ष आलस्य छोड़कर सब न्यायाधीश आदि राजपुरूषों के कामों को सदा घुमकर देखते रहें ।’’

(स० प्र० षष्ठ समु०)

उन पूर्वोक्त अध्यक्षों (११६ – ११७) के गांवों से सम्बद्ध राजकार्यों को और अन्य भिन्न – भिन्न कार्यों को भी राजा का एक विश्वासपात्र मन्त्री आलस्यरहित होकर देखे ।

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