राजधर्मान्प्रवक्ष्यामि यथावृत्तो भवेन्नृपः । संभवश्च यथा तस्य सिद्धिश्च परमा यथा

अब मनु जी महाराज ऋषियों से कहते हैं कि चारो वर्ण और चारों आश्रमों के व्यवहार कथन के पश्चात् (राजधर्मान् प्रवक्ष्यामि) राजधर्मों को, कहेंगे कि जिस प्रकार का राजा होना चाहिए और जैसे उसका संभव – बनना तथा जैसे उसको परमसिद्धि प्राप्त होवे उसको सब प्रकार कहते हैं ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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