अनेन क्रमयोगेन परिव्रजति यो द्विजः । स विधूयेह पाप्मानं परं ब्रह्माधिगच्छति ।

. इस क्रमानुसार संन्यास – योग से जो द्विज अर्थात् ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य संन्यास ग्रहण करता है वह इस संसार और शरीर में सब पापों को छोड़ – छुड़ाके परब्रह्म को प्राप्त होता है ।

(सं० वि० संन्यासाश्रम सं०)

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