अधर्मप्रभवं चैव दुःखयोगं शरीरिणाम् । धर्मार्थप्रभवं चैव सुखसंयोगं अक्षयम् ।

यह निश्चित है कि प्राणियों को सभी प्रकार के दुःख अधर्म से ही मिलते हैं और अक्षयसुखों की प्राप्ति केवल धर्म से ही होती है । इसको भी विचारे ।

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