देहादुत्क्रमणं चाष्मात्पुनर्गर्भे च संभवम् । योनिकोटिसहस्रेषु सृतीश्चास्यान्तरात्मनः ।

और प्रियजनों से वियोग हो जाना तथा शत्रुओं से संपर्क होना और उससे फिर कष्टप्राप्ति होना और बुढ़ापे से आक्रान्त होना तथा रोगों से पीडि़त होना और फिर इस शरीर से जीव का निकल जाना गर्भ में पुनः जन्म लेना और इस प्रकार इस जीव का करोड़ों – सहस्त्रों अर्थात् अनेकों योनियों में आवागमन होना – इनको विचारे और इनके कष्टों को देखकर मुक्ति में मन लगावे ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *