इन्द्रियाणां निरोधेन रागद्वेशक्षयेण च । अहिंसया च भूतानां अमृतत्वाय कल्पते ।

. इन्द्रियों को अधर्माचरण से रोक राग, द्वेष को छोड़ और सब प्राणियों से निर्वैर वत्र्तकर मोक्ष के लिए सामथ्र्य बढ़ाया करे ।

(स० प्र० पंच्चम समु०)

‘‘जो संन्यासी बुरे कामों से इन्द्रियों के निरोध, राग – द्वेषादि दोषों के क्षर और निर्वैरता से सब प्राणियों का कल्याण करता है, वह मोक्ष को प्राप्त होता है । ’’

(सं० वि० संन्यासाश्रम सं०

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