प्रजापति परमात्मा की प्राप्ति के निमित्त प्रजापत्येष्टि कि जिसमें यज्ञोपवीत और शिखा का त्याग किया जाता है आहवनीय, गार्हपत्य और दक्षिणात्य संज्ञक अग्नियों को आत्मा में समारोपित करके ब्राह्मण गृहाश्रम से ही संन्यास लेवे ।
(सं० वि० संन्यासाश्रम सं०)
‘‘प्रजापति अर्थात् परमात्मा की प्राप्ति के अर्थ इष्टि अर्थात् यज्ञ करके उसमें यज्ञादिशिखाचिन्हों को छोड़ आहवनीयादि पांच अग्नियों को प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान इन पांच प्राणों में आरोपण करके ब्राह्मण ब्रह्मवित् घर से निकलकर सन्यासीं हो जावे ।’’
(स० प्र० पंच्चम समु०)