विवाहों में जो स्वस्तिपाठ (शुभकामना के लिए मन्त्रपाठ) और प्रजापति – यज्ञ किया जाता है वह इनके कल्याण की भावना से ही किया जाता है विवाह में स्त्रियों को पति के लिए सौंप देना ही इन पर पति का अधिकार होने का कारण है अर्थात् विवाह संस्कार पूर्वक जो स्त्री को पति के लिए दे दिया जाता है तो इस दान के पश्चात् ही उन पर पति का अधिकार हो जाता है, उससे पूर्व नहीं ।