पित्रा भर्त्रा सुतैर्वापि नेच्छेद्विरहं आत्मनः । एषां हि विरहेण स्त्री गर्ह्ये कुर्यादुभे कुले । ।

कोई भी स्त्री पिता, पति अथवा पुत्रों से अपना बिछोह – अलग रहने की इच्छा न करे क्यों कि इनसे अलग रहने से यह आशंका रहती है कि कभी कोई ऐसी बात न हो जाये जिससे दोनों – पिता तथा पति के कुलों की निन्दा या बदनामी हो जाये । अभिप्राय यह है कि स्त्री को सर्वदा पुरूष की सहायता अपेक्षित रखनी चाहिए, उसके बिना उसकी असुरक्षा की आशंका बनी रहती है ।

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