वेदविद्याव्रतस्नाताञ् श्रोत्रियान्गृहमेधिनः । पूजयेद्धव्यकव्येन विपरीतांश्च वर्जयेत् ।

वेदों के विद्वान्, ज्ञानी और जो ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करके स्नातक बने हैं ऐसे वेदपाठी पिता – माता आदि गृहपतियों का देय पदार्थों और भोजन आदि से सत्कार करे और जो इनसे विपरीत हैं उन्हें छोड़दे ।

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