पाषाण्डिनो विकर्मस्थान्बैडालव्रतिकाञ् शठान् । हैतुकान्बकवृत्तींश्च वाङ्गात्रेणापि नार्चयेत् ।

सत्कार के अयोग्य व्यक्ति

पाखण्डी वेदों की आज्ञा के विरूद्ध चलने वाले विडालवृत्ति वाले हठी बकवादी और बगुलाभक्त मनुष्यों का वाणी से भी सत्कार नहीं करना चाहिए ।

(पू० प्र० १४३)

‘‘किन्तु जो पाखण्डी, वेदनिन्दक, नास्तिक, ईश्वर, वेद और धर्म को न मानें अधर्माचरण करने हारे हिंसक, शठ मिथ्याभिमानी कुतर्की और बकवृत्ति अर्थात् पराये पदार्थ हरने वा बहकाने में बगुले के समान अतिथि वेषधारी बन के आवें उनका वचनमात्र से भी सत्कार गृहस्थ कभी न करे ।’’

(सं० वि० गृहा०)

‘‘(पाखंडी) अर्थात् वेदनिन्दक, वेदविरूद्ध आचरण करने हारे जो वेदविरूद्ध कर्म का कत्र्ता मिथ्या भाषणादियुक्त, जैसे बिड़ाल छिप और स्थिर रहकर ताकता – ताकता झपट से मूषे आदि प्राणियों को मार अपना पेट भरता है, वैसे जनों का नाम वैडालवृत्ति अर्थात् हठी, दुराग्रही, अभिमानी आप जाने नहीं औरों का कहा माने नहीं कुतर्की, व्यर्थ बकने वाले जैसे कि आजकल के वेदान्ती बकते हैं, हम ब्रह्म और जगत् मिथ्या है, वेदादि शास्त्र और ईश्र भी कल्पित है, इत्यादि गपोड़ी हांकने वाले जैसे बक एक पैर उठा, ध्यानावस्थित के समान होकर झट मच्छी के प्राण हरके अपना स्वार्थ सिद्ध करता है, वैसे आजकल के वैरागी और खाखी आदि हठी दुराग्रही, वेदविरोधी हैं ; ऐसों का सत्कार वाणीमात्र से भी न करना चाहिए ।’’

(स० प्र० चतुर्थ समु०)

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