सर्वेषां एव दानानां ब्रह्मदानं विशिष्यते । वार्यन्नगोमहीवासस् तिलकाञ्चनसर्पिषाम्

वेद – दान की सर्वश्रेष्ठता –

संसार में जितने दान हैं अर्थात् जल, अन्न, गौ, पृथिवी, वस्त्र, तिल, सुवर्ण और घृतादि इन सब दानों से वेदविद्या का दान अति – श्रेष्ठ है ।

(स० प्र० तृतीय समु०)

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