जिस मार्ग से इसके पिता पितामह चले हों उस मार्ग में सन्तान भी चले, परन्तु जो सत्पुरूष पिता, पितामह हों उन्हीं के मार्ग में चलें और जो पिता, पितामह दुष्ट हों तो उनके मार्ग में कभी न चलें क्यों कि उत्तम धर्मात्मा पुरूषों के मार्ग में चलने से दुःख कभी नहीं होता ।
(स० प्र० चतुर्थ समु०)