अधार्मिको नरो यो हि यस्य चाप्यनृतं धनम् । हिंसारतश्च यो नित्यं नेहासौ सुखं एधते ।

अधर्म – निन्दा एवं फल

जो अधार्मिक मनुष्य हैं और जिस का अधर्म से संचित किया हुआ धन है और जो सदा हिंसा में अर्थात् वैर में प्रवृत्तरहता है वह इस लोक और परलोक अर्थात् परजन्म में सुख को कभी नहीं प्राप्त हो सकता ।

(सं० वि० गृहाश्रम प्र०)

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