Adhyay : 4 Mantra : 143 Back to listings स्पृष्ट्वैतानशुचिर्नित्यं अद्भिः प्राणानुपस्पृशेत् । गात्राणि चैव सर्वाणि नाभिं पाणितलेन तु । । Leave a comment यह प्रक्षिप्त श्लोक है और मनु स्मृति का भाग नहीं है . Related