न लोकवृत्तं वर्तेत वृत्तिहेतोः कथं चन । अजिह्मां अशथां शुद्धां जीवेद्ब्राह्मणजीविकाम्

. गृहस्थ जीविका के लिये भी कभी शास्त्रविरूद्ध लोकाचार का वत्र्ताव न वत्र्ते, किन्तु जिसमें किसी प्रकार की कुटिलता, मूर्खता, मिथ्यापन वां अधर्म न हो उस वेदोक्त कर्मसम्बन्धी जीविका को करे ।

(सं० वि० गृहाश्रम वि०)

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