शूनां च पतितानां च श्वपचां पापरोगिणाम् । वयसानां कृमीणां च शनकैर्निर्वपेद्भुवि । ।

और कुत्ता, पतित, चांडाल, पापरोगी, काक और कृमी इन छः नामों के छः भाग पृथिवी में धरे ।

(सं० वि० गृहाश्रम प्र०)

इस प्रकार ‘‘श्वभ्योनमः, पतितेभ्यो नमः, श्वपभ्यो नमः, पापरोगिभ्यो नमः, वायसेभ्यो नमः, कृमिभ्यो नमः, से बलि धर कर पश्चात् किसी दुःखी बुभुक्षित प्राणी अथवा कुत्ते, कौवे आदि को दे देवे । यहां नमः शब्द का अर्थ अन्न अर्थात् कुत्ते, पापी, चाण्डाल, पाप रोगी, कौवे और कृमि अर्थात् चींटी आदि को अन्न देना यह मनुस्मृति आदि की विधि है –

(सत्यार्थ० चतुर्थ समु०)

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