ब्रह्मयज्ञ एवं अग्नि होत्र का विधान
मनुष्य को चाहिए कि वह पढ़ने – पढ़ाने और संध्योपासन अर्थात् ब्रह्मयज्ञ में नित्य लगा रहे अर्थात् प्रतिदिन अवश्य करे और देवकर्म अर्थात् अग्निहोत्र भी अवश्य करे क्यों कि इस संसार में रहते हुए अग्निहोत्र करने वाला व्यक्ति इस समस्त चेतन और जड़ जगत् का पालन – पोषण और भला करता है ।