अग्नौ प्रास्ताहुतिः सम्यगादित्यं उपतिष्ठते । आदित्याज्जायते वृष्टिर्वृष्टेरन्नं ततः प्रजाः । ।

(वह पालन – पोषण और भला इस प्रकार होता है) अग्नि में अच्छी प्रकार डाली हुई घृत आदि पदार्थों की आहुति सूर्य को प्राप्त होती है – सूर्य की किरणों से वातावरण में मिलकर अपना प्रभाव डालती है, फिर सूर्य से वृष्टि होती है वृष्टि से अन्न पैदा होते हैं उससे प्रजाओं का पालन – पोषण होता है ।

‘‘उससे वायु और वृष्टि – जल की शुद्धि के होने से जगत् का बड़ा उपकार और सुख अवश्य होता है’’

(ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका वेदविषयविचार)

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