जपोऽहुतो हुतो होमः प्रहुतो भौतिको बलिः । ब्राह्म्यं हुतं द्विजाग्र्यार्चा प्राशितं पितृतर्पणम् ।

‘अहुत’ ‘जपयज्ञ’ अर्थात् ‘ब्रह्मयज्ञ’ को कहते हैं ‘हुतः’ होम अर्थात् ‘देवयज्ञ’ है ‘प्रहुत’ भूतों के लिए भोजन का भाग रखना अर्थात् ‘भूतयज्ञ’ या ‘बलिवैश्वदेवयज्ञ’ है ‘ब्रह्मयहुत’ विद्वानों की सेवा करना अर्थात् ‘अतिथियज्ञ’ है ‘प्राशित’ माता – पिता आदि का तर्पण – तृप्ति करना ‘पितृ – यज्ञ’ है ।

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