हीनक्रियं निष्पुरुषं निश्छन्दो रोमशार्शसम् । क्षयामयाव्यपस्मारि श्वित्रिकुष्ठिकुलानि च

विवाह में त्याज्य कुल

वे देश कुल ये हैं – एक – जिस कुल में उत्तम क्रिया न हो दूसरा – जिस कुल में कोई भी उत्तम पुरूष न हो तीसरा – जिस कुल में कोई विद्वान् न हो चैथा – जिस कुल में शरीर के ऊपर बड़े – बड़े लोम हों, पांचवां – जिस कुल में बवासीर छठा – जिस कुल में क्षयी रोग हो सातवां – जिस कुल में अग्निमन्दता से आमाशय रोग हो आठवां – जिस कुलमें मृगी रोग हो नववां – जिस कुल में श्वेतकुष्ठ और दशवां – जिस कुल में गलितकुष्ठ आदि रोग हों उन कुलों की कन्या अथवा उन कुलों के पुरूषों से विवाह कभी न करे ।

(सं० वि० विवाह सं०)

‘‘जो कुल सत्क्रिया से हीन, सत्पुरूषों से रहित वेदाध्ययन से विमुख, शरीर पर बड़े – बड़े लोम अथवा बवासीर, क्षयी, दमा, खांसी अमाशय, मिरगी श्वेतकुष्ठ और गलितकुष्ठयुक्त कुलों की कन्या वा वर के साथ विवाह होना न चाहिये क्यों कि ये सब दुर्गुण और रोग विवाह करने वाले के कुल में भी प्रविष्ट हो जाते हैं । इसलिये उत्तम कुल के लड़के और लड़कियों का आपस में विवाह होना चाहिए ।’’

(स० प्र० चतुर्थ समु०)

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