संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च । यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वै ध्रुवम्

हे गृहस्थो! जिस कुल में भार्या से प्रसन्न पति और पति से भार्या सदा प्रसन्न रहती है उसी कुल में निश्चित कल्याण होता है । और दोनों परस्पर अप्रसन्न रहें तो उस कुल में नित्य कलह वास करता है ।

(सं० वि० गृहाश्रम प्र०)

‘‘जिस कुल में भार्या से भत्र्ता और पति से पत्नी अच्छे प्रकार प्रसन्न रहती है, उसी कुल में सब सौभाग्य और ऐश्वर्य निवास करते हैं ।’’

(स० प्र० चतुर्थ समु०)

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