तस्मादेताः सदा पूज्या भूषणाच्छादनाशनैः । भूतिकामैर्नरैर्नित्यं सत्करेषूत्सवेषु च ।

. इस कारण ऐश्वर्य की इच्छा करने वाले पुरूषों को योग्य है कि इन स्त्रियों को सत्कार के अवसरों और उत्सवों में भूषण, वस्त्र, खान – पान आदि से सदा पूजा अर्थात् सत्कारयुक्त प्रसन्न रखें ।

(सं० वि० गृहाश्रम प्र०)

‘‘इसलिए ऐश्वर्य की कामना करने हारे मनुष्यों को योग्य है कि सत्कार और उत्सव के समय में भूषण, वस्त्र और भोजन आदि से स्त्रियों का नित्यप्रति सत्कार करें ।’’

(स० प्र० चतुर्थ समु०)

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