अनिन्दितैः स्त्रीविवाहैरनिन्द्या भवति प्रजा । निन्दितैर्निन्दिता नॄणां तस्मान्निन्द्यान्विवर्जयेत् ।

श्रेष्ठ विवाहों से सन्तान भी श्रेष्ठगुण वाली होती है निन्दित विवाहों से मनुष्यों की सन्तानें भी निन्दनीय कर्म करने वाली होती हैं इसलिए निन्दित विवाहों को आचरण में न लावे ।

इसलिए मनुष्यों को योग्य है कि जिन निन्दित विवाहों से नीच प्रजा होती है उनका त्याग और जिन उत्तम विवाहों से उत्तमप्रजा होती है, उनको किया करें ।

(सं० वि० विवाह सं०)

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