स्वाध्याय का फल –
यः जो व्यक्ति स्वाध्यायम् जल वर्षक मेघस्वरूप स्वाध्याय को वेदों का अध्ययन एवं गायत्री का जप, यज्ञ, उपासना आदि (२।७९–८१) शुचिः स्वच्छ – पवित्र होकर नियतः एकाग्रचित्त होकर विधिना विधि – पूर्वक अधीते करता है तस्य एषः उसके लिए यह स्वाध्याय नित्यं सदा पयः दधि घृतं मधु क्षरति दूध, दही, घी और मधु को बरसाता है ।
अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार इन पदार्थों का सेवन करने से शरीर तृप्त, पुष्ट, बलशाली और नीरोग हो जाता है, उसी प्रकार स्वाध्याय करने से भी मनुष्य का जीवन शान्तिमय, गुणमय, ज्ञानमय और पुण्यमय या आनन्दमय हो जाता है, अथवा धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इनकी सिद्धि हो जाती है ।