नैत्यके नास्त्यनध्यायो ब्रह्मसत्त्रं हि तत्स्मृतम् । ब्रह्माहुतिहुतं पुण्यं अनध्यायवषट्कृतम् । ।

. नैत्यके अनध्यायः न अस्ति नित्यकर्म में अनध्याय नहीं होता जैसे श्वास – प्रश्वास सदा लिये जाते हैं, बन्ध नहीं किये जाते, वैसे नित्यकर्म प्रतिदिन करना चाहिये, न किसी दिन छोड़ना हि क्यों कि अनध्यायवषट्कृतं ब्रह्माहुतिहुतं पुण्यम् अनध्याय में भी अग्निहोत्रादि उत्तम कर्म किया हुआ पुण्यरूप होता है ।

तत् ब्रह्मसत्रं स्मृतम् उसे ब्रह्मयज्ञ माना गया है……………………………… ।

जैसे झूठ बोलने में सदा पाप और सत्य बोलने में सदा पुण्य होता है, वैसे ही बुरे कर्म करने में सदा अनध्याय और अच्छे कर्म करने में सदा स्वाध्याय ही होता है ।

(स० तृतीय समु०)

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