वेदोपकरणे चैव स्वाध्याये चैव नैत्यके । नानुरोधोऽस्त्यनध्याये होममन्त्रेषु चैव हि

 

वेदोपकरणे चैव वेद के पठन – पाठन में च और नैत्यके स्वाध्याये नित्यकर्म मे आने वाले गायत्री जप या संध्योपासना (२।७९) में होम – मन्त्रेषु चैव तथा यज्ञ करने में अनध्याये अनुरोधः न अस्ति अनध्याय का आग्रह नहीं है अर्थात् इन्हें प्रत्येक स्थिति में करना चाहिए, इनके साथ अनध्याय का नियम लागू नहीं होता ।

‘‘वेद के पढ़ने – पढ़ाने, संध्योपासनादि पंचमहायज्ञों के करने और होम – मन्त्रों में अनध्यायविषयक अनुरोध आग्रह नहीं है ।’’ (स० प्र० तृतीय समु०)

‘‘वेद – पाठ, नित्यकर्म और होम – मन्त्रों में अनध्याय नहीं है । नित्यकर्म का अभिप्राय यह है कि अपने मन का लक्ष्य परमेश्वर को बनाया जावे, इसलिए प्रत्येक कर्म की समाप्ति पर यह कहा जाता है कि मैं इस कर्म का या इसके फल को परमेश्वर के अर्पण करता हूँ ।’’

(पू० प्र० पृ० १४४ – १४५)

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