वशे कृत्वेन्द्रियग्रामं संयम्य च मनस्तथा । सर्वान्संसाधयेदर्थानक्षिण्वन्योगतस्तनुम् ।

इन्द्रियम – संयम से स्वार्थ सिद्धि –

इन्द्रियग्रामम् पांच कर्मेन्द्रिय, पांच ज्ञानेन्द्रिय इन दश इन्द्रियों के समूह को च और मनः ग्यारहवें मन को वशे कृत्वा वश में करके योगतः तनुं अक्षिण्वन् युक्ताहार विहार रूप योग से शरीर की रक्षा करता हुआ सर्वान् अर्थान् संसाधयेत् सब अर्थों को सिद्ध करे ।

(सं० प्र० दशम० समु०)

‘‘ब्रह्मचारी पुरूष सब इन्द्रियों को वश में करके और आत्मा के साथ मन को संयुक्त करके योगाभ्यास से शरीर को किंचित् – किंचित् पीड़ा देता हुआ अपने सब प्रयोजनों को सिद्ध करे ।’’

(सं० प्र० दशम० समु०)

‘‘ब्रह्मचारी पुरूष सब इन्द्रियों को वश में करके और आत्मा के साथ मन को संयुक्त करके योगाभ्यास से शरीर को किंचित् – किंचित् पीड़ा देता हुआ अपने सब प्रयोजनों को सिद्ध करे ।’’

(स० वि० वेदारम्भ सं०)

संन्ध्योपासन – समय –

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