पूर्वां संध्यां जपांस्तिष्ठेत्सावित्रीं आर्कदर्शनात् । पश्चिमां तु समासीनः सम्यगृक्षविभावनात्

संन्ध्योपासन – समय –

. आर्कदर्शनात् पूर्वां संध्याम् दो घड़ी रात्रि से लेके सूर्योदय पर्यन्त प्रातः संध्या सम्यक् ऋक्षविभावनात् तु पश्चिमाम् सूर्यास्त से लेकर अच्छी प्रकार तारों के दर्शन पर्यन्त सांयकाल में समासीनः भली भांति स्थित होकर सावित्री जपन् तिष्ठेत् सविता अर्थात् सब जगत् की उत्पत्ति करने वाले परमेश्वर की उपासना गायत्र्यादि मन्त्रों के अर्थ विचारपूर्वक नित्य करें ।

(द० ल० पं० पृ० २३६)

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