इन्द्रियाणां तु सर्वेषां यद्येकं क्षरतीन्द्रियम् । तेनास्य क्षरति प्रज्ञा दृतेः पादादिवोदकम्

एक भी इन्द्रिय के असंयम से प्रज्ञाहानि –

सर्वेषाम् इन्द्रियाणां तु सब इन्द्रियों में यदि एकम् इन्द्रियं क्षरति एक भी इन्द्रिय अपने विषय में आसक्त रहने लगती है तो तेन उसी के कारण अस्य प्रज्ञा क्षरति इस मनुष्य की बुद्धि ऐसे नष्ट होने लगती है दृतेः पादात् उदकम् इव जैसे चमड़े के वत्र्तन – मशक में छिद्र होने से सारा पानी बहकर नष्ट हो जाता है ।

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