श्रुत्वा स्पृष्ट्वा च दृष्ट्वा च भुक्त्वा घ्रात्वा च यो नरः । न हृष्यति ग्लायति वा स विज्ञेयो जितेन्द्रियः

जितेन्द्रिय की परिभाषा –

जितेन्द्रियः स विज्ञेयः जितेन्द्रिय उसको कहते हैं कि यः नरः जो मनुष्य श्रुत्वा स्तुति सुन के हर्ष और निन्दा सुन के शोक स्पृष्ट्वा अच्छा स्पर्श करके सुख और दुष्ट स्पर्श से दुःख दृष्ट्वा सुन्दर रूप देख के प्रसन्न और दुष्टरूप देख के अप्रसन्न भुक्त्वा उत्तम भोजन करके आनन्दित और निकृष्ट भोजन करके दुःखित घ्रात्वा न हृष्यति ग्लायति सुगन्ध में रूचि दुर्गन्ध में अरूचि न करता ।

(स० प्र० दशम समु०)

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