उपस्पृश्य द्विजो नित्यं अन्नं अद्यात्समाहितः । भुक्त्वा चोपस्पृशेत्सम्यगद्भिः खानि च संस्पृशेत्

. द्विजः द्विज नित्यम् प्रतिदिन उपस्पृश्य आचमन करके समाहितः एकाग्र मन से अन्नं अद्यात् भोजन खाये च और भुक्त्वा खाकर सम्यक् अच्छी प्रकार उपस्पृशेत् कुल्ला करे च तथा अद्भिः खानि संस्पृशेत् जल से नाक, कान ‘‘नेत्र आदि इन्द्रियों का स्पर्श करे ।’’

‘‘नित्य ………….भोजन के पूर्व शुद्ध जल का आचमन किया कर ।’’

(सं० वि० वेदारम्भ संस्कार)

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