विषात् अपि अमृतं ग्राहयम् विष से भी अमृत का ग्रहण करना बालात् अपि सुभाषितम् बालक से भी उत्तम वचन को ले लेना (सं० वि० ८५)
और अमिवात्, अपि सद् वृत्तम् वैरी से भी श्रेष्ठ आचरण सीख लेना चाहिए, तथा अमेध्यात् अपि कांच्चनम् अशुद्ध स्थान से भी स्वर्ण को प्राप्त कर लेना चाहिए ।