परीवादात्खरो भवति श्वा वै भवति निन्दकः । परिभोक्ता कृमिर्भवति कीटो भवति मत्सरी ।

यह प्रक्षिप्त श्लोक है और मनु स्मृति का भाग नहीं है .

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